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प्रस्तुत पुस्तक ‘सरल ज्योतिष’ पं. काशीनाथ भट्टाचार्य द्वारा संग्रहित ज्योतिषशास्त्र पर एक बहुश्रुत, प्रामाणिक एवं प्राचीन ग्रन्थ है। जैसाकि नाम से स्पष्ट है,ज्योतिष का त्वरित गति से ‘शीघ्र बोध’ कराने वाला यह अमूल्य व अनमोल ग्रन्थ 667 मूल संस्कृत श्लोकों के मामयम से कुल 424 भिन्न-भिन्न विषयों पर रोचक जानकारी समेटे हुए है। जो व्यक्ति इन विषयों को सरसरी तौर पर पढ़ जाता है, वह अत्यन्त अल्पकाल में ज्योतिष शास्त्र का उद्भट ज्ञाता एवं विद्वान बन जाता है। यह ग्रन्थ ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा प्रचलित है तथा अधिकतर सनातन हिन्दू धर्म के आचार-विचार, लोक-व्यवहार इसी ग्रन्थ पर आधारित हैं, इसलिए इस ग्रन्थ का बड़ा महत्व है। यह ग्रन्थ कुल चार प्रकरणों में विभाजित है, जो कि इस प्रकार हैं।
संग्रहकार ने प्रथम प्रकरण में परिचय खण्ड, अवकहड़ा व योग, क्षय मास,अधिक मास, भद्रा विचार, पंचक विचार देते हुए विवाह प्रकरण पर आदि ध्यान केन्द्रित किया है। इसमें अष्टकूट, विवाह मेलापक, भौम विचार, सूर्यादि ग्रहों की रेखाए,ं विवाह म ंे गह्रों क े विश्वा,विवाह लग्न, विवाह में नवमांश विचार, इत्यादि 214 विभिन्न विषयों की जानकारी 274 श्लोकों के मामयम से दी है। ‘विवाह प्रकरण’ इस ग्रन्थ का सबसे बड़ा खण्ड है।
द्वितीय प्रकरण का नाम ‘वधू प्रवेश’ है, जिसमे विवाह के बाद की घटनाओं का उल्लेख किया गया है। यथा द्विरागमन, गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार,प्रसूति स्नान, नामकरण, जलवा पूजन, अन्नप्राशन, मुण्डन, विद्यारम्भ, यज्ञोपवीत एवं मंत्रा दीक्षा की चर्चा 53 श्लोकों में समाहित है। इसके बाद मुहर्त प्रकरण प्रारम्भ हो जाता है।
तृतीय प्रकरण की शुरुआत ‘अंग स्पर्श’ से की गई है। प्रश्न विद्या के माध्यम से चोरी हुई वस्तु, गुमशुदा वस्तु प्रकरण, ग्रहांे का गोचर भ्रमण, इत्यादि 35 विषयों की चर्चा 70 श्लोकों के माध्यम से मुखरित हुई है। यह इस ग्रन्थ का सबसे छोटा खण्ड है, परन्तु बहुत उपयोगी है।
चतुर्थ प्रकरण, जो इस ग्रन्थ का अंतिम खण्ड है, सम्वतसरों के नामों से प्रारम्भ होता है। जल नक्षत्रों की संज्ञा, नक्षत्र परत्व वर्षाज्ञान, तिथि परतत्व वर्षाज्ञान, विद्युत, मेघ एवं वायु परीक्षा, मौसम विज्ञान, देवोत्पात, रोहणी निर्णय, दीपमालिका शुभाशुभ ज्ञान, द्वादश राशिगत गुरु, शनि के पफल से वर्ष के शुभाशुभ का ज्ञान, मान-माान्य की तेजी-मंदी परीक्षा, छिक्का प्रश्न एवं पल्लीपतन पर आधारित कुल 80 विषयों का प्रतिपादन 146 श्लोकों के माध्यम से किया है।
जानकारी के हिसाब से इस ग्रन्थ को एक ऐसा बहुमूल्य कैप्सूल ;ब्ंचेनसमद्धकह सकते हैं, जो अनेक प्रकार की विभिन्न रोचक जानकारियों से परिपूर्ण है।
इतने लघुकाय छोटे ग्रन्थ में इतनी सारी जानकारी देना भी अपने आप में एक रिकॉर्ड है। मेरी यह पहली रचना है, अतः मेरा प्रयास रहेगा कि ज्योतिषप्रेमी जनता को अधिक जनप्रिय एवं प्रामाणिक जानकारी दूं, जो दैनिक जीवन में अधिक उपयोगी हो। इस ग्रन्थ में ‘निषेमा प्रकरण’ पर मैंने अधिकतम अपवाद टिप्पणियों सहित देने की कोशिश की है, जिसका अन्य ग्रन्थांे में नितान्त अभाव है। यद्यपि यह ग्रन्थ ज्यादा प्राचीन नहीं है। क्योंकि भारतीय ज्योतिष के प्राचीनग्रन्थ एवं ग्रन्थकारों में पं. काशीनाथ का उल्लेख नहीं मिलता। तथापि यह गत तीन सोै वर्षों से ज्योतिष शास्त्रा का सांगोपांग ज्ञान कराने में अद्वितीय एवं जन-जन प्रिय सर्वाधिक प्रचलित ग्रन्थ है, जो दैनिक व्यवहार में काम लिया जाता रहा है।