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नवरत्न जड़ित श्रीयंत्र को धारण करने से ग्रहपीडा व कुयोग समाप्त होते है तथा लक्ष्मी प्रसन्न रहती है। इस यंत्र के पूजन से अष्टसिद्धियां और नौ निधियां प्राप्त होती है। इस यंत्र को धारण करने मात्र से मनुष्य को धन, समृद्धि, यश किर्ती प्राप्त होती है। शास्त्र वचन के अनुसार स्वर्ण, चांदी एवं ताम्र (त्रिलोह) में निर्मित श्रीयन्त्र के चारों ओर यदि नवरत्न जड़ दिए जाएं तो यह श्रीयन्त्र ‘नवरत्न जड़ित
श्रीयन्त्र’ कहलाता है। परन्तु ध्यान रखने योग्य बात यह है कि इस श्रीयन्त्र के शीर्ष बिन्दु पर सूर्य का रत्न माणिक्य आना चाहिए।
इस यंत्र को लाॅकेट के रूप में धारण करने से व्यक्ति को अनन्त ऐश्वर्य व लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। व्यक्ति को ऐसा आभास होता है जैसे लक्ष्मी उसके साथ है। नवग्रह श्रीयन्त्र से बंधे हुए होने के कारण ग्रहों की प्रतिकुल दशा का असर धारण करने वाले व्यक्ति पर नहीं होता। गले में होने के कारण यह यन्त्र अत्यन्त पवित्र रहता है एवं स्नान करते समय इस यन्त्र से स्पर्श होकर जो
जल बिन्दु शरीर को लगते हैं, वह गंगा जल के समान पवित्र हो जाता है। अपरोक्ष रूप से एक प्रकार से व्यक्ति का नित्य प्रति ‘रत्न स्नान’ भी हो जाता है। इसलिए यह सबसे शक्तिशाली श्रीयन्त्र कहलाता है। जिस प्रकार अमृत से ऊपर कोई औषधि नहीं, उसी प्रकार लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस श्रीयन्त्र से बढ़िया अन्य कोई यन्त्र संसार में नहीं है। इस प्रकार के श्रीयन्त्र दीपावली की सन्ध्या में सिंह लग्न में तैयार कर मंत्रसिक्त किये जायेगें।
नवरत्न जड़ित श्रीयंत्र को धारण करने से ग्रहपीडा व कुयोग समाप्त होते है तथा लक्ष्मी प्रसन्न रहती है। इस यंत्र के पूजन से अष्टसिद्धियां और नौ निधियां प्राप्त होती है। इस यंत्र को धारण करने मात्र से मनुष्य को धन, समृद्धि, यश किर्ती प्राप्त होती है। शास्त्र वचन के अनुसार स्वर्ण, चांदी एवं ताम्र (त्रिलोह) में निर्मित श्रीयन्त्र के चारों ओर यदि नवरत्न जड़ दिए जाएं तो यह श्रीयन्त्र ‘नवरत्न जड़ित श्रीयन्त्र’ कहलाता है। ध्यान रखने योग्य बात यह है कि इस श्रीयन्त्र के शीर्ष बिन्दु पर सूर्य का रत्न माणिक्य आना चाहिए।नवरत्न जड़ित श्रीयंत्र शुद्ध स्वर्ण में
श्रीयंत्र को शास्त्रों में माता महालक्ष्मी का यंत्र कहा गया है। श्री विद्या प्रदीपिका में लिखा हैं, कि श्रीयंत्र के इर्द गिर्द यदि नौ रत्नों को लगा दिया जाता हैं, तो उससे लक्ष्मी प्राप्ति के मार्ग खुल जाते हैं। नौ रत्न जड़ित श्रीयंत्र धारण करने से नौ ग्रह अनुकुल हो जाते हैं, साथ हीं स्वर्ण धातु में महालक्ष्मी का निवास माना गया हैं, स्वर्ण युक्त श्रीयंत्र धारण करने से कैसी भी दरिद्रता नष्ट हो समाप्त हो जाती हैं, तथा व्यक्ति लक्ष्मी का कृपा प्राप्त बन जाता है।